फूले फूल बबूल कौन सुख, अनफूले कचनार
Phule phul babul kon sukh anphule kachnar
फूले फूल बबूल कौन सुख, अनफूले कचनार ।
वही शाम पीले पत्तों की
गुमसुम और उदास
वही रोज़ का मन का कुछ
खो जाने का एहसास
टाँग रही है मन को एक नुकीले खालीपन से
बहुत दूर चिड़ियों की कोई उड़ती हुई कतार ।
फूले फूल बबूल कौन सुख, अनफूले कचनार ।
जाने; कैसी-कैसी बातें
सुना रहे सन्नाटे
सुन कर सचमुच अंग-अंग में
उग आते हैं काँटें
बदहवास, गिरती-पड़ती-सी; लगीं दौड़ने मन में-
अजब-अजब विकृतियाँ अपने वस्त्र उतार-उतार
फूले फूल बबूल कौन सुख, अनफूले कचनार ।