एक पैगाम आकाश के नाम
Ek Pegam aakash ke naam
आकाश!
कब तक ओढ़ोगे
परंपरा की पुरानी चादर,
ढोते रहोगे
व्यापक होने का झूठा दंभ,
तुम्हारा उद्देश्यहीन विस्तार
नहीं ढक सका है
किसी का नंगापन
छोड़कर कल्पना,
वास्तविकता पर उतर आओ,
भाई! अपने नीले फलक पर
इन्द्रधनुष नहीं
रोटियाँ उगाओ।