हम भी दुखी तुम भी दुखी
Hum bhi dukhi tum bhi dukhi
रातरानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
हम लिए बरसात
निकले इन्द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में ।
और चारों ओर
उड़ती है समय की बेरुख़ी!
सिर्फ़ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना ‘वरन’ खोने लगी ।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी ।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी ।