कितनी ख़ुशलफ़्ज़ थी तेरी आवाज़
Kitni Khushlafz th thi teri awaz
कितनी ख़ुशलफ़्ज़ थी तेरी आवाज़
अब सुनाए कोई वही आवाज़।
ढूँढ़ता हूँ मैं आज भी तुझमें
काँपते लब, छुई-मुई आवाज़।
शाम की छत पे कितनी रौशन थी
तेरी आँखों की सुरमई आवाज़।
जिस्म पर लम्स चाँदनी शब का
लिखता रहता था मख़मली आवाज़।
ऎसा सुनते हैं, पहले आती थी
तेरे हँसने की नुक़रई आवाज़।
अब इसी शोर को निचोड़ूँगा
मैं पियूँगा छनी हुई आवाज़।