Hindi Poem of Piyush Mishra “  Ujala hi ujala”,”उजला ही उजला” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

उजला ही उजला

 Ujala hi ujala

 

उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम-तुम बनाएँगे घर

दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा ना बाज़ों का डर

मखमल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी

कोनों में बैठी बहारें भी होंगी

खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी

चन्दन से लिपटी हाँ सेहन भी होगी

सन्दल की ख़ुशबू भी टपकेगी छत से

फूलों का दरवाज़ा खोलेंगे झट से

डोलेंगे महकी हवा के हाँ झोंके

आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के

आँगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते

सूखे से नाज़ुक से पीले छिटक के

पाँवों को नंगा जो करके चलेंगे

चर-पर की आवाज़ से वो बजेंंगे

कोयल कहेगी कि मैं हूँ सहेली

मैना कहेगी नहीं हूँ अकेली

बत्तख भी चोंचों में हँसती-सी होगी

बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी

हम फिर भी होंगे पड़े आँख मूँदे

कलियों की लड़ियाँ दिलों में हाँ गूँधे

भूलेंगे उस पार के उस जहाँ को

जाती है कोई डगर…

चाँदी के तारों से रातें बुनेंगे तो चमकीली होगी सहर

उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर

आओगे थककर जो हाँ साथी मेरे

काँधे पे लूँगी टिका साथी मेरे

बोलोगे तुम जो भी हाँ साथी मेरे

मोती सा लूँगी उठा साथी मेरे

पलकों की कोरों पे आए जो आँसू

मैं क्यों डरूँगी बता साथी मेरे

उँगली तुम्हारी तो पहले से होगी

गालों पे मेरे तो हाँ साथी मेरे

तुम हँस पड़ोगे तो मैं हँस पड़ूँगी

तुम रो पड़ोगे तो मैं रो पड़ूँगी

लेकिन मेरी बात इक याद रखना

मुझको हमेशा ही हाँ साथ रखना

जुड़ती जहाँ ये ज़मीं आसमाँ से

हद हाँ हमारी शुरू हो वहाँ से

तारों को छू लें ज़रा सा सँभल के

उस चाँद पर झट से जाएँ फिसल के

बह जाएँ दोनों हवा से निकल के

सूरज भी देखे हमें और जल के

होगा नहीं हम पे मालूम साथी

तीनों जहाँ का असर…

राहों को राहें भुलाएँगे साथी हम ऐसा हाँ होगा सफ़र

उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर

 

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