मेरे मन हँसते हुए चल – प्रदीप
Mere man hanste hue chal -Pradeep
आज नहीं तो कल बिखर जायेंगे ये बादल
हँसते हुए चल
मेरे मन हँसते हुए चल
बीती हुई बातों पे
बीती हुई बातों पे अब रोने से क्या फल
हँसते हुए चल
मेरे मन हँसते हुए चल
गुज़र चुका है जो ज़माना
गुज़र चुका है जो ज़माना
तू भूल जा उसकी धुन
जो आनेवाले दिन हैं
उनकी आवाज़ को सुन
मुझे पता है बड़े बड़े
तूफ़ान हैं तेरे सामने
खुशी खुशी तू सहता जा
जो कुछ भी दिया है राम ने
अपनी तरह कितनों के
यहाँ टूट चुके हैं महल
हँसते हुए चल
मेरे मन हँसते हुए चल
फूलों का सेहरा बाँधनेवाले
इस दुनिया में अनेक
जो काँटों का ताज पहन ले
वो लाखों में एक
मेरे मन वो लाखों में एक
गिरे बिजलियां गिरे बिजलियां
गिरे बिजलियां फिर भी अपनी
टेक से तू मत टल
हँसते हुए चल
मेरे मन हँसते हुए चल
मेरी मुहब्बत आज जलाना
सम्भल के ज़रा चिराग
मेरी मुहब्बत आज जलाना
सम्भल के ज़रा चिराग
मैं काग़ज़ के घर में बैठी
लग न जाये आग
लग न जाये आग मेरी क़िस्मत में
लग न जाये दाग मेरी इज़्ज़त में
इस देश की नारी को
इस देश की नारी को
कोई कह न दे दुरबल
हँसते हुए चल
मेरे मन हँसते हुए चल