Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Apna ghar”,” अपना घर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अपना घर

 Apna ghar

 

कहाँ है मेरा घर?

जाना चाहती हूँ ,

रहना चाहती हूँ अब वहीं!

छोटी थी तो समझ में नहीं आता था ,

सुनती थी पराई अमानत हूँ,

अपने घर जाकर जो मन आये करना!

धीरे-धीरे समझ में आता गया

कि यह  घर मेरा नहीं ।

पर फिर यहाँ  जन्म क्यों लिया?

बड़ी हुई – घर ढूँढा जाने लगा  जहाँ भेज दी जाऊं ,

उऋण हो जायें ये लोग ,भार मुक्त!

चुपचाप चली आई नये लोगों में!

पर ये घर तो उनका था

जो लोग यहीं रहते आये थे!

मैं नवागता ,

ढालती रही अपने को उनके हिसाब से!

नाम उनका ,धाम उनका ,

सारी पहचान उनकी!

बनाये रखने की जिम्मेदारी मेरी थी ,

निभाती रही!

निबटाते -निबटाते चुक गई ,

अब भी रह रही हूँ पराये घरों में ,

सबके अपने ढंग!

ढाल रही हूँ फिर अपने को

कितनी बार ,कितनी तरह!

अंतर्मन बार-बार  पुकारता है –

‘चलो अपने घर चलो!’

जनम-जनम से गुमनाम भटक रही हूं!

कहाँ है मेरा घर!

 

 

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