Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Arnay man”,”अरण्य-मन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अरण्य-मन

 Arnay man

 

अब तो महाभारत व्यतीत हुआ!

छोड़ गया और भी अकेली

जो समझा धोखा था,

बची सिर्फ़ थकन और

पछतावे भरा मन .

झूठ औऱ सच तुम्हें अर्पण!

कहाँ ले जाऊँ पर अरण्य-मन.

बदल गया सारा कुछ,

आँख खोल

देखती हूँ यत्र-तत्र,

शून्य सा बड़ा विचित्र!

अंतर का घट रीतता गया.

ज़िन्दगी का दाँव हर बार

कुछ और तिक्त कर गया

जाते जाते पे महाभारत,

सारे ही अर्थों को बदल गया

द्रौपदी और भी अकेली है,

अपने किसी निविड़ एकान्त में .

सूर्य-पुत्र

दोष सिर्फ़ मेरा था,

कर्ण, क्षमा, व्यर्थ रोष मेरा था .

एक भूल ज़िन्दगी भर फली

बार बार मैं गई छली.

सभी बंधु बाँट लें .

पर कहाँ?

प्रथम कौन्तेय, तुम्हीं सर्व प्रथम मेरे थे .

सारे भ्रम टूट गये,

जीवन से सारे मान झूठ गये

सारी व्यवस्था को,

झूठ अन्याय, सदा घेरे थे

रहीं जहाँ सदा दुरभिसंधियाँ,

देव का प्रसाद कलंकित हुआ .

सूर्यपुत्र और अग्नि संभवा

व्यर्थ गई रूप-अनुरूपता .

पा न सके पूर्णता!

बार-बार चुभी एक फाँस सी

युद्ध हेतु अस्त्र मात्र रह गये

चिन्गियाँ बिखेर ताप झेलते

बार-बार जो कि टकरा गये .

और हर बार हुई वंचना.

प्राप्य जो रहा, वही नहीं मिला.

शूल सा चुभा कहीं करक रहा

सिर्फ़ आक्रोश-रोष ही जिया!

अवश क्रोध और विफल कामना

अग्नि संभवा सुलगती रही

सूर्यपुत्र ने सदा तिमिर पिया

द्रौपदी और भी अकेली है,

कितनी भूलों का, अपराधों का बोझ लिये

कितने अपमानों के दंश सहे,

किसके काँधे सिर धरे, सभी शामिल थे?

कितना और झेले और कुछ न कहे!

कृष्ण, एक तुम ही निस्संग रहे,

शक्ति यही, भक्ति कहो भले विरक्ति कहो,

मोह कहो द्रोह कहो,

एक आसरा कहो या चाहे अनुरक्ति कहो

रहो छाँह दिये एक मात्र परितृप्ति रहो,

बस सुनो तुम .

और डूब जाये

तुम्हीं में अरण्य मन!

 

 

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