छिनाय गयो हमरो ही नाम
Chinay gyo hamro hi naam
आजु तो न्योति के बिठाई रे कन्या
हलवा पूरी औ’पान
सोई बिटेवा,परायी अमानत,
चैन गा सब का पलान!
कल ही लगाय के हल्दी पठइ हौ
मिलिगा, सो ओहिका भाग
आपुन निचिन्त हनाय लीन गंगा
बियाह दई, इहै बड़ काज!
एकइ दिन माँ बदल गई दुनिया
छिन गयो माय का दुलार
बियाह गयी कन्या,
समापत भा बचपन
मूड़े पे धरि गा पहार!
सातहि फेरन पलट गई काया
गुमाय गई आपुन पहचान!
बिछुआ महावर तो पाँयन की बेड़ी
सेंदुर ने छीन्यो गुमान!
हमका का चाहित हमहुँ नहिं जानै,
को जानी, हम ही हिरान!
आँगन में गलियन में,
बिछड़ी सहिलियन में,
हिराइगा लड़कपन हमार
छूट गयो मइका,
लुपत भइली कनिया,
बंद हुइगे सिगरे दुआर!
ऐही दिवारन में
उढ़के किवारन में सिमटि गो हमरो जहान!
रहि गई रसुइया,
बिछौना की चादर,
भीगी फलरियाँ औ’रातन को जागर!
अलान की पतोहिया,
फलान की मेहरिया,
ढिकान की मतइया,
बची बस इहै पहिचान!
मर मर के पीढ़ी चलावन को जिम्मा.
हम पाये का का इनाम?
छिनाय गयो हमरो ही नाम,
मिटाय गई सारी पहचान.