Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Durbhagya”,” दुर्गम्या” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दुर्गम्या

 Durbhagya

 

कोई तोहमत जड़ दो औरत पर ,

कौन है रोकनेवाला!

कर दो चरित्र हत्या ,

या धर दो कोई आरोप!

हटा दो रास्ते से!

हाँ ,वे दौड़ा रहे हैं सड़क पर

‘टोनही है यह  ‘,

‘नज़र गड़ा चूस लेती है बच्चों का ख़ून!’

उछल-उछल कर पत्थर फेंकते ,

चीख़ते ,पीछे भाग रहे हैं!

खेल रहे हैं अपना खेल!

अकेली औरत ,

भागेगी कहाँ भीड़ से!

चोटों से छलकता खून

प्यासे हैं लोग!

सहने की सीमा पार ,

जिजीविषा भभक उठी खा-खा कर वार!

भागी नहीं  ,चीखी नहीं!

धिक्कार भरी दृष्टि डालती

सीधी खड़ी हो गई

मुख तमतमाया क्रोध-विकृत!

आँखें जल उठीं दप्-दप्!

लौट पड़ी वह  !

नीचे झुकी, उठा लिया वही पत्थर

आघात जिसका उछाल रहा था रक्त!

भरी आक्रोश

तान कर मारा  पीछा करतों पर!

‘हाय रे ,चीत्कार उठा ,

मार डाला रे!

भीड़ हतबुद्ध, भयभीत!

और दूसरा पत्थर उठाये दौड़ी!

अब पीछा वह कर रही थी ,

भाग रहे थे  लोग!

फिर फेंका उसने ,घुमा कर पूरे वेग से!

फिर चीख उटी!

उठाया एक और!

भयभीत, भाग रही हैं भीड़!

कर रही है पीछा

अट्टहास करते हुये

प्रचंड चंडिका !

धज्जियां कर डालीं थीं वस्त्रों की

उन लोगों ने ,

नारी-तन  बेग़ैरत करने को!

सारी लज्जा दे मारी उन्हीं पर!

पशुओं से क्या लाज?

ये बातें अब बे-मानी थीं!

दौड़ रही है ,निर्भय उनके पीछे ,हाथ में पत्थर लिये

जान लेकर भाग रहे हैं लोग!

भीत ,त्रस्त ,

सब के सब ,एक साथ गिरते-पड़ते ,

अँधाधुंध  इधर-उधर!

तितर-बितर!

थूक दिया उसने उन कायरों की पीठ पर!

और

श्लथ ,वेदना – विकृत,

रक्त ओढ़े दिगंबरी ,

बैठ गई वहीं धरती पर!

पता नहीं कितनी देर!

फिर उठी , चल दी एक ओर!

अगले दिन खोज पड़ी

कहां गई चण्डी?

कहाँ गायब हो गई?

पूछ रहे थे  एक दूसरे से ।

कहीं नहीं थी वह!

उधऱ  कुयें में उतरा आया  मृत शरीर!

दिगंबरा चण्डी को वहन कर सक जो

वहां कोई शिव नहीं था!

सब शव थे !

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