Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Jab se tumhe dekha he”,”जब से तुम्हें देखा है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जब से तुम्हें देखा है

 Jab se tumhe dekha he

 

जब से तुम्हें देखा है अखबार के पन्ने पर ,

मन का चैन उड़ गया है, समीरा!

पल-पल अपने ज़मीर को मारती हुई

कैसे जीती हो इतनी कालिमा ओढ़े!

एक हथियार बन उनके हाथों का

करती हुई अनगिनती समीराओं का शिकार!

वे रौंद देते है उन्हें कि तुम समझा सको कि अब दो ही रास्ते हैं

उनकी ज़लालत भरी ज़िन्दगी के लिये ,

जमीन में आधी गाड़ी जा कर पत्थरों की बौछार

या

अल्लाह के नाम पर कुर्बान हो जाओ –

जीवित बम बन

कितनों की मौत बन चिथड़े उड़वा दो अपने!

इन औरतों के लिये ,

चैन नहीं कहीं।

मरने के बाद भी

जहन्नुम का इन्ज़ाम पक्का!

बहुत सचेत हैं वे दरिन्दे कि

कहीं कोई कँवारी अल्लाह को प्यारी हो

जन्नत न पा जाये!

छोड़ देते हैं कोई मुस्टंडा उसके ऊपर!

एक या दस ,उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है

झेलना तो  उसे है भयावह मौत!

कैसे छल पाती हो समीरा ,

अपने आप को?

कैसी ज़िन्दगी है तुम्हारी!

अल्लाह के नाम पर ,

कैसी दरिन्दगी है!

औरत?

मर्दों का एक खिलौना ,

बचपन से ही काट-छाँट ,

अपने सुख और अहम् की तुष्टि के लिये!

जी भर खेला और फेंक दिया!

तुम भी तो एक औरत हो!

तुम्हें कुछ नहीं लगता!

सोचा है कभी

कि उनके जन्नत में तुम्हारी कहीं गुज़र नहीं!

कैसे जीती हो तुम ,मेरा तो चैन उड़ गया है समीरा!

जब से तुम्हें देखा है!

 

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