जन्नत का नज़ारा
Jannat ka nazara
बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये!
वाह क्या बात है!
यह है जन्नत का नज़ारा!
यहाँ तो चार पर ही मन मार कर रह जाना पड़ता है ,
और वे चारों भी समय के साथ ,
कितनों की माँ बन-बन कर हो जाती हैं रूढ़ी, पुरानी ,
अल्लाह की रहमत!
बहत्तर कुआँरियां ,
हमेशा जवान रहेंगी ,हर समय तुम्हारा मुँह देखेंगी ,राह तकेंगी!
न माँ ,न बहन ,न बेटी ,
ये सब फ़लतू के रूप हैं औरत के!
सामने न आयें!
बस बहत्तर कुआँरियाँ और दिन रात भोग-विलास!
और हमें क्या चाहिये!
अल्लाह को ख़ुश करने के लिये ,
सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें ,
बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें!