कहाँ की बात
Kaha ki baat
चलो बात आई गई हो गई!
छोड़ो शिकायत जो बो गई!
कहा-सुना तो ,क्या चिपक गया ,
फिर भी तो मन कुछ हिचक गया!
बोलो न, ,चुप मत रहो, भई!
अच्छा ,चलो बाहर निकल चलें ,
कुछ कदम मिल कर पैदल चलें!
हँसें, ज़रा! मिलते हैं लोग कई!
ज़िन्दगी है .ये सब तो चलता है ,
थोड़ा सा नमक-मिर्च मिलता है!
हुई नहीं कोई भी बात नई!
छत फाड़ ठहाका उठा था जब
एक दूसरे की तरफ़ देखा तब,
चार आँखें, लिये सवाल कई!
नज़रें थीं शर्ट के सिन्दूर पर!
खुले होंठ, दृष्टि झुकी झेंप कर
बची-खुची बर्फ़ सब पिघल गई!