Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Master ki chori”,” मास्टर की छोरी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मास्टर की छोरी

 Master ki chori

 

विद्या का दान चले ,

जहाँ खुले हाथ ,

कन्या तो और भी 

सरस्वती की जात!

और सिर पर पिता मास्टर का हाथ!

कंठ में वाणी भर ,

पहचान लिये अक्षर!

शब्दों की रचना  

अर्थ जानने का क्रम!

समझ गई  शब्दों के रूप और भाव

और फिर  शब्दों से पार पढ़े  मन!

जाने कहाँ कहाँ के छोर ,

गहरी गहरी डूब तक!

बन गया व्यसन!

मास्टर की छोरी!

पराये  लगे न कभी ,

लड़के ,हर बार नये ,

घर में आ रहते रहे!

माता का मन उदार  ,

भूख-प्यास जान रही ,

अक्सर ही स्वेटर भी!

पढ़-लिख, तैयार चरण छूते,

बिदा होते!

किसी को भी नहीं खला ,

कभी कमी नहीं  पड़ी!

यों ही बड़ी होती रही

मास्टर की छोरी!

एक दिन किसी ने कहा 

उनके पास है क्या सिवा

फ़ालतू की  बातों के

और इन किताबों के ?

क्या अचार डालेगी ,

रीत-भाँत- दुनिया से  कोरी ,

मास्टर की छोरी!

बुरा लगा  , हुई दुखन!

जान गई अपना सच ,

साध लिया बिछला मन!

दुनिया को समझ रही

अपने से परख रही

मास्टर की छोरी!

ब्याह गई!

नये लोग नये ढंग!

कमरोंवाला मकान,

लोक- व्यवहार ,

सभी साज और सँवार!

लेकिन किताबों बिन ,

सूनी सी  लगतीं रही

भरी  अल्मारियाँ !

चाह उठे बार-बार ,

कभी  एकान्त खोज,

मन चाही किताब खोल

पास धर  लाई-चना

देर तक पढ़ती रहे शान्त – चुपचाप!

कहीं रुके अनायास ,

कुछ सोचती  या गुनती  रहे!

मास्टर की छोरी!

*

पढ़ती सभी के मन ,

करने लगी जतन!

ले अकेलापन

कौन जाने वह चुभन!

पाट नहीं पा रही .

भीतर और बाहर के बीच बसी दूरी!

मास्टर की छोरी!

 

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