मीराँ
Meera
ओ, राज महल की सूनी सी वैरागिन,
ओ अपने मन मोहन की प्रेम-दिवानी,
ओ मीरा तेरी विरह रागिनी जागी,
तो गूँज उठी युग-युग के उर की वाणी!
चिर-प्यासे मरुथल की कोकिल मतवाली,
तू कूक उठी तो गूँजा जग का आँगन!
तेरी वाणी अंतर का स्वर भर छाई,
तो मुखर हो उटा संसृति का सूनापन!
जिसके प्राणों की करुणा भरी व्यथायें
बन कर वरदान विश्व के नभ में छाईं,
आनन्द फलों को अबतक बाँट रही है
जो प्रेम-बेलि आँसू से सींच उगाई!
अनुराग भरा तेरा वैरागी जीवन,
करुणा से प्लावित तेरी प्रणय कहानी!
बस रहा श्याम का रूप नैन मे मन में,
फिर कैसी झूठी लोक-लाज की माया!
कर दिया हृदय ने पूरा आत्म समर्पण,
फिर शेष बचा क्या अपना और पराया!
जब आँसू गाने लगे वेदना रोई,
तो मधुर-मधुर संगीत प्राण ने पाया,
अविनाशी प्रिय को पाने के पथ पर भी,
तब सभी जगत ने व्यंग्य, किया ठुकराया! ,
जीवन के छायाहीन अजाने पथ में,
जिसके प्राणों की पीर न जग ने जानी!
अब भी तो बाज रहे हैं तेरे घुँघरू
जग के आँगन मे वे स्वर गूँज रहे हैं,
मनमोहन की वह मीरा नाच रही है .
गीतों में अँतर के स्वर कूक रहे हैं!
तू स्नेह दीप की ज्वलित वर्तिका बन कर
जब अमर ज्योति ले अलख जगाने आई,
पीयूष स्रोत बन गई व्यथा की गाथा,
प्रतिबिंब बन गई वह पावन परछाईं!
वरदान बना वह शाप विश्व जीवन को,
मंगल मय हो तेरे नयनों का पानी!
साधना पंथ की अथक अकेली यात्री,
तुम मूर्तिमती योगिनी बनी करुणा की,
चिर-तृषित हृदय की आराधना जगा कर,
तुम जलो आरती की निष्कंप शिखा सी!
ओ मीरा, तेरी स्वर लहरी से खिंचकर,
तेरा चिर-प्रियतम आयेगा,आयेगा,
चिर- विरह भरी जीवन की दुख-यात्रा पर
वह मधुर मिलन क्षण बन कर छा जायेगा!
ओ चरण कमल की जनम-जनम की दासी,
अविजेय वेदना के गीतों की रानी!
ओ मीरा तेरी विरह रागिनी जागी,
तो गूँज उठी युग-युग के उर की वाणी!