Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Mukti”,” मुक्ति” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मुक्ति

 Mukti

 

कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर!

यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य!

पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर ,

उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख!

आभार तुम्हारा!

आत्मज मेरे!

हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा ,

जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार!

तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में,

चूक गये होंगे कितनी बार

आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें!

पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें!

विस्तृत आकाश में उड़ान भरते

कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये

कोई आशंका व्याप न जाये!

चलना है बहुत आगे तक ,

समर्थ हो तुम!

शान्त और प्रसन्न मन से

तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब

और स्वयं को भी

हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से,

कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम!

जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से!

क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है

और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं!

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