Hindi Poem of Pratibha Saksena “  O chand jara dhire dhire”,” ओ चाँद जरा धीरे-धीरे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

ओ चाँद जरा धीरे-धीरे

 O chand jara dhire dhire

 

कोई शरमीली साध न बाकी रह जाये!

किरणों का जाल न फेंको अभी समय है,

जो स्वप्न खिल रहे, वे कुम्हला जायेंगे

ये जिनके प्रथम मिलन की मधु बेला है,

हँस दोगे तो सचमुच शरमा जायेंगे!

प्रिय की अनन्त मनुहारों से

जो घूँघट अभी खुला है, तुम झाँक न लेना

अभी प्रणय का पहला फूल खिला है!

स्वप्निल नयनों को अभी न आन जगाना,

कानो में प्रिय की बात न आधी रह जाये!

पुण्यों के ठेकेदार अभी पहरा देते,

ये क्योंकि रोशनी अभी उन्हें है अनचीन्हीं!

उनके पापों को ये अँधेर छिपा लेगा,

जिनके नयनो मे भरी हुई है रंगीनी!

जीवन के कुछ भटके राही लेते होंगे,

विश्राम कहीं तरुओं के नीचे छाया में,

है अभी जागने की न यहाँ उनकी बारी,

खो लेने दो कुछ और स्वप्न की माया में,

झँप जाने दो चिर -तृषित विश्व की पलकों को,

मानवता का यह पाप ढँका ही रह जाये!

जिनकी फूटी किस्मत में सुख की नींद नहीं,

आँसू भीगी पलकों को लग जाने देना!

फिर तो काँटे कंकड़ उनके ही लिये बने,

पर अभी और कुछ देर बहल जाने देना!

यौवन आतप से पहले जिन कंकालों पर

संध्या की गहरी मौन छाँह घिर आती है!

इस अँधियारे में उन्हें ढँका रह जाने दो,

जिनके तन पर चिन्दी भी आज न बाकी है!

सडकों पर जो कौमार्य पडा है लावारिस,

ऐसा न हो कि कुछ लाज न बाकी रह जाये!

ओ चाँद जरा धीरे-धीरे नभ में उठना …!

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