प्रलय-यामिनी
Pralay yamini
बढी आ रही,इक प्रलय की लहर
ने कहा जिन्दगी से अरे यों न डर
आज कितनी मधुर है प्रलय यामिनी!
आज लहरें बढेंगी बुलाने तुम्हें,
आज स्वागत करेगा तिमिर यह गहन!
फेन बुद्बुबुद् बिछाये यहाँ पंथ में
उस गगन पंथ से साथ ले धोर घन,
वह महाकाल का रथ बढा आ रहा,
बज रहे ढोल बाजे गहन घोर स्वर,
मौर मे झलमलाती है सौदामिनी!
आँसुओं से भरे ये तुम्हारे नयन,
यों न व्याकुल बनो मैं अभी साथ हूँ,
यह न घर था तुम्हारा सदा के लिये,
आज तुम पर जगत के प्रहर वार दूँ!
द्वार का पाहुना है अनोखा बडा,
सिर्फ़ स्वागत सहित लौटने का नहीं,
साथ मे है बराती प्रलय-वाहिनी!
आज जाना पडेगा दुल्हन सी विवश,
इस धरा से अभी नेह से भेंट लो!
यह सदा की सहेली घडी ढल रही,
छुट रहा साथ इससे बिदा माँग लो
आ रहा आज कोई बुलाने तुम्हें उस
अपरिचय भरी शून्य की राह में,
लो सुनो, यह बिदा की करुण रागिनी!