Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Rakt Beej”,”रक्तबीज” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रक्तबीज

 Rakt Beej

 

भैंसा फिर उछल रहा है!

घसीट रहा  इन्सानियत को जकड़ने,

डालने को कैद में,

अपनी रखैल बना कर!

उछल-उछल बार बार,चला रहा है सींग ,

खुर पटक-पटक कर खूँद रहा है धरती!

वहाँ तो बीज रक्त में थे ,

घरती पर बूँद गिरते नये शरीर खड़े हो जाते!

यहाँ तो मानसिकता है रक्तबीजी ,

फैलते हैं बीज हवा के साथ ,

उगती हैं फ़सलें!

गिनती कहाँ?

उनकी फ़ितरत में है

विश्व द्रोह!

विचार- विवेक -वर्जित अँधेरों में जीना

फ़ितरत है उनकी!

ज़िन्दगी के लिये यही शर्त है उनकी!

शताब्दियों की

मनुजता की विरासत,

संस्कृतियाँ ,कलायें , विद्यायें ,

नाम-निशान मिटा दो  सब का!

तोड़ दो ,जला दो सब कुछ

जो उनके अनुकूल नहीं है!

रोशनी नहीं है कहीं!

छाया है कुहासा ,आच्छन्न हैं दिशायें,

आकाश बहुत धुँधला है

और उन पर किया गया कोई भी प्रहार ,

रोपता असंख्य रक्तबीज!

समाधान सिर्फ़ एक!

इतिहास स्वयं को दोहराये –

देवों के सार्थक अंशों से रूपायित हुई थी जैसे चण्डिका!

शक्तियाँ जगत की मिल महाकार धर ,

तुल जायँ करने को आर-पार  फ़ैसला!

घेर लें  दनुज को उन्मत्त महाकाली सी-

क्रुद्ध, कराल और सन्नद्ध!

प्रचण्ड वार से संहारती

अपनी लाल जिह्वा लपलपाती वही चामुण्डा

तीक्ष्ण दाँतों से चबा-चबा ,  रक्त पी-पी 

उगल  डाले रिक्त अंश!

लाओ रोशनी ,किरणें बिखेरो ,

वर्ना दम घुट जायेगा -इन्सानियत का!

कि धरती मुक्त ,हवा निर्मल ,और दिशायें दीप्त हो जायें ,

कि निर्विघ्न हो सके मानवता की जय-यात्रा,

और मंगलाचरण एक नये युगका!

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