Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Sanjh ghubiniya”,”साँझ – धुबिनियाँ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ – धुबिनियाँ

 Sanjh ghubiniya

 

रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के,

साँझधुबिनियाँ नभ के तीर उदास सी,

लटका अपने पाँव क्षितिज के घाट पे

थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी!

फेन उठ रहा साबुन का आकाश तक,

नील घोल दे रहीं दिशाएँ नीर में,

डुबो-डुबो पानी में साँझ खँगारती

लहरें लहरातीं पँचरंगे चीर में!

धूमिल हुआ नील जल रंग बदल गया

उजले कपड़ों की फैला दी पाँत सी!

रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के,

साँझ-धुबिनियाँ, नभ के तीर उदास सी!

माथे का पल्ला फिसला-सा जा रहा,

खुले बाल आ पड़े साँवले गाल पर

किरणों की माला झलकाती कंठ में

कुछ बूँदें आ छाईं उसके भाल पर!

काँधे पर वे तिमिर केश उलझे पड़े,

पानी में गहरी सी अपनी छाया लम्बी डालती!

लटका अपने पाँव, क्षितिज के घाट पे

थक कर बैठ गई ले एक उसाँस सी!

रंग-बिरंगी अपनी गठरी खोल के,

साँझ-धुबिनियाँ, नभ के तीर उदास सी!

 

 

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