तेरी मुक्ति
Teri Mukti
मेरे स्वर तब तक न थमेंगे ,जब तक जीवन बीत न जाये
तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये!
और नहीं तो बँधे रहो ,
मेरे स्वर के बंधन चंचल हैं!
बरबस मन में उतर चलेंगे ,
मेरे अंतर्गीत विकल हैं!
तुम न रहो तो शायद फिर ,
सारा संसार विजन बन जाये!
तुम न सुनो तो हृत्तंत्री की
तान न फिर शायद जग पाये
तुम न सुनो तो संभव है ,
मेरी वाणी फिर गीत न गाये!
तुम न लखो तो शायद यह अस्तित्व ,
जगत में ही घुल जाये!
चलती रहें उजाड़ हवायें ,
जीवन की आशायें बिखरा ,
छायेगी अनजान बने से
सपनों पर बेसुध सी तंद्रा!
अब के बाद न जाने कितने
दिन गुमसुम से ढल जायेंगे
जाने कितने आज सदा को ,
इसी तरह बन कल जायेंगे!
दृष्टि उठेगी महाशून्य में ,
सम्मुख कोई चित्र न होगा!
अब के बाद अकेलेपन का
शायद कोई मित्र न होगा!
दूर रहो तो एक मिलन की
चाह जगाते रहना प्रिय तुम ,!
मेरे स्वर की दुनियां में ,
मृदु राग जगाते रहना प्रिय तुम!
यों ही रहना -कहना है जब तक ये साँसें रूठ न जायें
तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये!