Hindi Poem of Pratibha Saksena “ Tum Achir madhumas ki pahli suhagin”,” तुम अचिर मधुमास की पहली सुहागिन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तुम अचिर मधुमास की पहली सुहागिन

 Tum Achir madhumas ki pahli suhagin

 

तुम अचिर मधुमास की पहली सुहागिन,

क्यों न जाने कुँज-वन मे कूकती रहतीं अकेली!

लाल फूलों का सुभग सिन्दूर लेकर,

आगया ऋतुराज तेरे ही वरण को,

नवल-पल्लव की सुकोमल अँगुलियों ने

रचे तोरण और बन्दनवार तेरे आगमन को,

गन्ध-भारित पुष्प-केशर ने तुम्हारा पथ सँजोया,

तुम्हें जीवन भर मिला नव-राग फिर भी

क्या न जाने बूझती रहतीं अकेली!

शिशिर का हिम और आतप-ताप वर्षा की झड़ी भी

आ नहीं पाते कभी तेरे बरस में,

महमहाते कुँज बौराये, तुम्हारी कूक सुन,

उडती नहीं है धूल भी तेरे हरष में,

किन्तु तुम होकर सभी से भिन्न, गहरी पत्तियों के

सघन छाया-वनों मे ही डूबती रहतीं अकेली!

है निराला रंग सबसे ही तुम्हारा .

ये वसन्ती-वायु क्या तुमको न छू पाती कभी भी

क्या तुम्हारे तिमिर से उस श्याम तन में, एक भी

आलोक की, अनुराग की रेखा नहीं आती कभी भी?

एक गुँजन से भरी वन-वीथियाँ जिन पर चलीं तुम,

तुम अमर मधु-मास भोगी, क्यों न जाने कूकती रहतीं अकेली!

तुम सुखों की हूक बन कर कूक उठतीं,

ओ मुखर- एकान्त की व्याकुल निवासिनि,

तुम मिलन के मधु प्रहर मे भी अकेली,

प्यार के पहले क्षणों मे भी विरागिन .

सुख-सुरभि-सौंदर्य के नीरव जगत में ढाल देतीं

मर्मस्पर्शी मधुर स्वर-लहरी रुपहली!

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.