यात्रा
Yatra
पुकार आ रही है!
आसार बन रहे हैं एक नई यात्रा के!
आहट सुन कसक उठी भीतर से;
हर यात्रा की पूर्व संध्या होता है ऐसा!
सीमित आत्म से निकल
विराट् में प्रवेश करने का द्वार
यात्रा!
तैयार हो लूँ!
जहाँ ,जिस तरह रही ,
घेरे से बाहर निकल आऊँ
सारा ताम-झाम छोड़!
बिदा ,प्रिय स्मृतियों ,आशाओं-इच्छाओं ,संबंधों ,
स्वीकार लो प्रणाम मेरा ,
कि आगे निकल सकूँ,
निरी एकाकी ,निरुद्विग्न और निरपेक्ष!
कि नये दृष्य ,नये अनुभव,
मुक्त चेतना में समा सकें ,
कि एकदम अनाम अनुभूतियाँ
अजाने संवेदन ग्रहण करने को
मन के स्तर खुल जायें!
रह जाऊँ एकदम
खाली स्लेट,
कि होनेवाले अंकन सुस्पष्ट रहें!