Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Yodha ka vishad”,” योद्धा का विषाद” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

योद्धा का विषाद

 Yodha ka vishad

 

जो व्यर्थ लाद कर घूम रही धर दूँ सारा बोझा उतार!

ये गीता और महाभारत सुन लेंगे थोड़ी देर बाद

यह महासमर की भूमि जान ले योद्धा के मन का विषाद!

मानव के संबंधों के सहज,विकृत कैसे अनगिन स्वरूप,

जीवन के कितने रंग, वृत्तियाँ दोष और गुण समाहार!

नारी के लिये जहाँ संभव ही नहीं कि मानव रहे सहज

केवल वर्जना, और एकाँगी आदर्शों का भार दुसह!

कुठ दूर अकेले चलें कि, अपने निर्णय के पल और टलें

चाहों की अँतिम खेप मित्र, इस तट पर ही जाऊँ उतार!

कुछ पीछे मुड़ कर लूँ निहार कैसे थे वे रिश्ते नाते!

सब धूल झाड़ कर साफ़ स्वच्छ पहले सँवार लूँ दर्पण में!

इन मोड़ों पर तो ओट सभी आँखों से होता वैसे भी

यादों की लाठी टेक जाँच लें किये-धरे को एक बार!

कुछ मीत और कोई अपने, रह गये आज केवल सपने

जो दूर गये दर्शन कर लूँ नयनों में उनकी छवियाँ भर!

कुछ पछतावे कुछ क्षमा-दान जो शेष रहे पूरे कर लूँ,

फिर सहज प्रसन्न मुक्त मन से नाविक से कह दूँ चलो पार!!

 

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