Hindi Poem of Prayag Shukla “Kabhi kabhi“ , “कभी-कभी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कभी-कभी
Kabhi kabhi

कभी-कभी चला जाता हूँ
किसी पुराण-वन में
सेंकते धूप दोपहर की: बरामदे में-
हिरण दिखते हैं, पक्षी कई,
कोटर उनके, घनी डालों में
छिपी हुईं कुछ की
बोलियाँ उनमें।

चमक उठता जल
कहीं आता जब निकल
कुछ दूर बहुत बड़े
बहुत घने वृक्षों के
तले की पगडंडियों से-

कुछ न कुछ घटता ही रहता
है पुरा-वन में।
दिखता है अश्व
भटकता एक,
जैसे ढूँढता हो खोया सवार।
और वे कुछ वन-कन्याएँ
गूँथती फूल जूड़ों में।

वृक्षों के तनों में
रश्मियाँ सुनहरी रुपहली वे।
शाम हो जाती है:
आता हूँ कैसे तो
बचकर हिंस्र पशुओं से,
साबुत मैं!

सराहता नगर के
ऊपर के तरे दो-चार
चन्द्रमा,
अनंतर निकलकर
कमरे के बाहर मैं,
आकर वापस बरामदे में!

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