Hindi Poem of Rakesh Khandelwal “Kalpna ke chitra mere , “कल्पना के चित्र मेरे ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

कल्पना के चित्र मेरे – राकेश खंडेलवाल

Kalpna ke chitra mere – Rakesh Khandelwal

 

बढ़ रहे हैं हर डगर में आजकल कोहरे घनेरे
और धुंधले हो रहे हैं कल्पना के चित्र मेरे

रह गये हैं आज स्मॄति की पुस्तकों के पॄष्ठ कोरे
खोल कर पट चल दिये हैं शब्द आवारा निगोड़े
अनुक्रमणिका से तुड़ा सम्बन्ध का हर एक धागा
घूमते अध्याय सारे बन हवाओं के झकोरे

ओढ़ संध्या की चदरिया, उग रहे हैं अब सवेरे
और धुंधले हो रहे हैं कल्पना के चित्र मेरे

हैं पुरातत्वी शिलाओं के सरीखे स्वप्न सारे
अस्मिता की खोज में अब ढूँढ़ते रहते सहारे
जुड़ न पाती है नयन से यामिनी की डोर टूटी
छटपटाते झील में पर पा नहीं पाते किनारे

हैं सभी बदरंग जितने रंग उषा ने बिखेरे
और धुंधले हो रहे हैं कल्पना के चित्र मेरे

भित्तिचित्रों में पिरोतीं आस कल जो कल्पनायें
आज आईं सामने लेकर हजारों वर्ज़नायें
व्यक्तता जब प्रश्न करती हाथ में लेकर कटोरा
एक दूजे को निहारें, लक्षणायें व्यंजनायें

शेष केवल मौन है जो दे रहा है द्वार फेरे
और धुँधले हो रहे हैं कल्पना के चित्र मेरे

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