Hindi Poem of Ram Naresh Tripathi “ Astodya ki vina“ , “अस्तोदय की वीणा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अस्तोदय की वीणा

 Astodya ki vina

 

बाजे अस्तोदय की वीणा–क्षण-क्षण गगनांगण में रे।

हुआ प्रभात छिप गए तारे,

संध्या हुई भानु भी हारे,

यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥

ह्रास-विकास विलोक इंदु में,

बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में,

कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥

ऐसी ही गति तेरी होगी,

निश्चित है क्यों देरी होगी,

गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे॥

निश्चय करके फिर न ठहर तू,

तन रहते प्रण पूरण कर तू,

विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे?

 

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