Hindi Poem of Ramdarash Mishra “Banaya hai mene ye ghar dhire dhire“ , “बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे

Banaya hai mene ye ghar dhire dhire

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,

खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।

किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,

कटा ज़िंदगी का सफ़्रर धीरे-धीरे।

जहाँ आप पहुँचे छ्लांगे लगाकर,

वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।

पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,

उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।

न हँस कर न रोकर किसी में उडे़ला,

पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे।

गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,

गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।

ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,

उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे।

मिला क्या न मुझको ए दुनिया तुम्हारी,

मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे।

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