Hindi Poem of Ramdarash Mishra “Sahyatra ke saath baras“ , “सहयात्रा के साठ बरस” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सहयात्रा के साठ बरस

Sahyatra ke saath baras

साथ-साथ चलते जाना कब साठ बरस बीते!

एक हाथ में थी कविता, दूजे में थी रोटी

हम तानते रहे दोनों की लय छोटी-छोटी

चलते रहे सफ़र में हम यों ही खाते-पीते!

जब आया जलजला, पाँव काँपने लगे डर से

बढ़कर थाम लिया हमने इक-दूजे को कर से

कितना कुछ टूटा-फूटा, पर हम न कभी रीते!

छोटे-छोटे सुख-पंछी फड़काते थे पाँखें

छोटे-छोटे सपनों से भर आती थीं आँखें

गिरे-पड़े, कुछ हारे-से भी, पर आख़िर जीते!

ख़ुद के गिरने पर उठकर तुम कितना हँसती थीं

पर मेरी छोटी-सी डगमग तुमको डँसती थी

भर आते थे जीवन-रस से, पल विष-से तीते!

जब-जब दूर हुआ घर से, तनहा हो घबराया

तब-तब लगा मुझे, कोई स्वर तुम जैसा आया-

घबराना मत तनहाई से, मैं तो हूँ मीते!

 

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