Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Dilli”, “ दिल्ली (कविता) ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

दिल्ली (कविता) -रामधारी सिंह दिनकर

Dilli -Ramdhari Singh Dinka

यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?

मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे शृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!

इस उजाड़ निर्जन खंडहर में,
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर में

तुझे रूप सजाने की सूझी,
इस सत्यानाश प्रहर में!

डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया – तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;

हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इन पर नमक हाय, छिड़कना!

महल कहां बस, हमें सहारा,
केवल फूस-फास, तॄणदल का;

अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का,
गम, आँसू या गंगाजल का;

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