संकर से सुर जाहिं जपैं -रसखान
Sankar se sur jahin jape -Raskhan
संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं।
नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै।।
जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं।
ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।।