Hindi Poem of Ravindra Bharamar “Bat he shabd nahi he“ , “बात है शब्द नहीं हैं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बात है शब्द नहीं हैं

 Bat he shabd nahi he

बात है

शब्द नहीं हैं

कैसे खोल दूँ ग्रंथित मन!!

तुम अधीर प्रान हुए कुछ सुनने को

मर्म के उगे दो आखर चुनने को,

प्रीति है

मुक्ति नहीं है,

कैसे तोड़ दूँ सब बंधन?

बाँसुरी लगी है लाज नहीं बजेगी

स्वर की सौतन राधा नहीं सजेगी,

कण्ठ है

गान नहीं है,

रूठ न जाना मनमोहन!

पाँव लग रहूँगी मौन, सहूँगी व्यथा,

कह न सकूँगी अपने स्वप्न की कथा,

भाव हैं

छंद नहीं हैं,

मौन ही बनेगा समर्पन!!

कैसे खोल दूँ ग्रंथित मन?

बात है, शब्द नहीं हैं

मौन ही बनेगा समर्पन!!

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