सिन्धु-वेला
Sindhu vela
सिंधु-वेला ।
तप्त रेती पर पड़ा चुपचाप मोती सोचता है, आह!
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर,
क्या हुआ, किसने उजाड़ा मुझे
ज्वार आए, गए, जल-तल शाँत-निश्चल,
मैं यहाँ निरुपाय ऐसे ही तपूँगा ।
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल ।
बहुत संभव, फिर न मुझको मिले
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर ।
किंतु, माता-भूमि ।
आह! स्वर्गिक भूमि ।।
सिंधु, उसकी अनथही गहराइयाँ
शंख, घोंघे, मछलियाँ, साथी-संघाती,
आह! माता भूमि!
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल ।
तप्त रेती पर पड़ा चुपचाप मोती सोचता है ।
सिंधु-वेला ।