Hindi Poem of Rituraj “Falak“ , “फलक” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

फलक

 Falak

खेत को देखना

किसी बड़े कलाकार के चित्र को

देखने जैसा है

विशाल काली पृष्ठभूमि

जिस पर हरी धारियाँ

मानो सावन में धरती ने

ओढ़ा हो लहरिया

फलक ही फलक तो है सारा जहान

ऊपर नीला उजला

विरूप में भी तरह तरह के

पैटर्न रचता

सूरज तक से छेड़खानी करता

फलक है स्याह-सफ़ेद

रुकी हुई फ़िल्म जैसा

शहर के समूचे परिदृश्य में

एक कैनवास है रंगीन

धुले-भीगे शिल्प का

और सारे प्राणी उनका यातायात

बिन्दुओं के सिमटने-फैलने का

बेचैन वृत्ताकार है

फलक हैं वृक्षों के

आकाश छूते छत्र

वे चिड़ियाँ जो ख़ामोशी से

दूसरी चिड़ियों को उड़ता देख रही हैं

गोकि दूर झील का झिलमिलाता

पानी और यथास्थित धुन्ध

इस विराट फ्रेम को बाँधता है

लेकिन जो उस किसान ने

सोयाबीन में रचा है

बाहर फूटा पड़ रहा है

कहता है

जब तक रूप गतिशील नहीं होता

जब तक रंग ख़ुद-ब-ख़ुद

रूपाकार नहीं बनता

जब तक उपयोगिता सिद्ध नहीं होती

किसी सृष्टि की

तब तक आशा और प्रतीक्षा में

ठहरा रहेगा समय

अस्तित्व की निरपेक्षता में

वह भी एक फलक ही तो है

 

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