Hindi Poem of Rituraj “Gyanijan“ , “ज्ञानीजन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

ज्ञानीजन

 Gyanijan

ज्ञान के आतंक में

मेरे घर का अन्धेरा

बाहर निकलने से डरता है

ज्ञानीजन हँसते हैं

बन्द खिड़कियाँ देखकर

उधड़े पलस्तर पर बने

अकारण भुतैले चेहरों पर

और सीलन से बजबजाती

सीढ़ियों की रपटन पर

ज्ञान के साथ

जिनके पास आई है अकूत सम्पदा

और जो कृपण हैं

मुझ जैसे दूसरों पर दृष्टिपात करने तक

वे अब दर्प से मारते हैं

लात मेरे जंग खाए गिराऊ दरवाज़े पर

तुम गधे के गधे ही रहे

जिस तरह कपड़े के जूतों

और नीले बन्द गले के रुई भरे कोटों में

माओ के अनुयायी…

सर्वज्ञ, अगुआ

ज्ञान-भण्डार के भट्टारक, महा-प्रज्ञ

कटाक्ष करते हैं:

ख़ुद तो ऐसे ही रहा दीन-हीन

लेकिन इसकी स्त्री ने कौनसा अपराध किया

कि मुरझाई नीम चढ़ी गिलोय को

दो बून्द पानी भी नसीब नहीं हुआ ।

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