अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए
Ab agar hamse khudai bhi khafa ho jaye
अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए
गैर-मुमकिन है कि दिल दिल से जुदा हो जाए
जिस्म मिट जाए कि अब जान फ़ना हो जाए
गैर-मुमकिन है…
जिस घड़ी मुझको पुकारेंगी तुम्हारी बाँहें
रोक पाएँगी न सहरा की सुलगती राहें
चाहे हर साँस झुलसने की सज़ा हो जाए
गैर-मुमकिन है…
लाख ज़ंजीरों में जकड़ें ये ज़माने वाले
तोड़ कर बन्द निकल आएँगे आने वाले
शर्त इतनी है कि तू जलवा-नुमाँ हो जाए
गैर-मुमकिन है…
ज़लज़ले आएँ गरज़दार घटाएँ घेरें
खंदकें राह में हों तेज़ हवाएँ घेरें
चाहे दुनिया में क़यामत ही बपा हो जाए
गैर-मुमकिन है…