Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Bhadka rahe he aag lab e namagar se hum“ , “भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम

 Bhadka rahe he aag lab e namagar se hum

भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम|

ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम|

कुछ और बड़ गए अंधेरे तो क्या हुआ,

मायूस तो नहीं हैं तुलु-ए-सहर से हम|

[सहर=शाम]

ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है,

क्यूँ देखें ज़िन्दगी को किसी की नज़र से हम|

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके,

कुछ ख़ार कम कर गए गुज़रे जिधर से हम|

 

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