Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Ek taraf se gujre the kafile baharo ke“ , “इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के

 Ek taraf se gujre the kafile baharo ke

इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के

आज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों के

खल्वतों के शैदाई खल्वतों में खुलते हैं

हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दादारों के

पहले हंस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैं

आश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दियारों के

तुमने सिर्फ चाहा है हमने छू के देखे हैं

पैरहन घटाओं के, जिस्म बर्क-पारों के

शगले-मयपरस्ती गो जश्ने-नामुरादी है

यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के

 

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