जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई
Jab kabhi un ke tavajjo me kami pai gai
जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई
अज़ सर-ए-नव-ए-दास्तान-ए-शौक़ दोहराई गई
बिक चुके जब तेरे लब फिर तुझ को क्या शिकवा अगर
जि़न्दगानी बादा-ओ-साग़र से बहलाई गई
ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानों से तिबयत राह पर लाई गई
हम करें तकर्-ए-वफ़ा अच्छा चलो यूं ही सही
और अगर तकर्-ए-वफ़ा से भी न रुस्वाई गई
कैसे कैसे चश्म-ओ-आरिज़ गदर्-ए-ग़म से बुझ गए
कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई
दिल की धड़कन में तवज्ज़ुन आ चला है ख़ैर हो
मेरी नज़रे बझ गयीं या तेरी रानाई गई
उन का ग़म उन का तस्व्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयीं आई गई
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मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
Mere khwabo ke jharokho ko sajane wali
अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़हन-ए-इन्सां बस्त-ए-औहाम है साक़ी
हक़ीक़त-आशनाई अस्ल में गुम-कदर्ह-राही है
उरूस-ए-आगही परवरदह-ए-अबहाम है साक़ी
मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानी
जवानी बेनियाज़-ए-इब्रत-ए-अन्जाम है साक़ी
अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है
मेरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी
वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दे-ए-शब को
जहाँ हर सुबह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी