शाहकार
Shankar
मुसव्विर मैं तेरा शाहकार वापस करने आया हूं
अब इन रंगीन रुख़सारों में थोड़ी ज़िदर्यां भर दे
हिजाब आलूद नज़रों में ज़रा बेबाकियां भर दे
लबों की भीगी भीगी सिलवटों को मुज़महिल कर दे
नुमाया रग-ए-पेशानी पे अक्स-ए-सोज़-ए-दिल कर दे
तबस्सुम आफ़रीं चेहरे में कुछ संजीदापन कर दे
जवां सीने के मखरुती उठाने सरिनगूं कर दे
घने बालों को कम कर दे, मगर रख्शांदगी दे दे
नज़र से तम्कनत ले कर मिज़ाज-ए-आजिजी दे दे
मगर हां बेंच के बदले इसे सोफ़े पे बिठला दे
यहां मेरे बजाए इक चमकती कार दिखला दे