Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Ajnabi desh he yah“ , “अजनबी देश है यह” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अजनबी देश है यह

 Ajnabi desh he yah

अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है

कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है 

जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,

नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है 

होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त

द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है 

शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा

कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है 

देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,

फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है 

हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में

रास्ता है कि कहीं और चला जाता है 

दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की

आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.