Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “ Batuta ka juta“ , “बतूता का जूता” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बतूता का जूता

 Batuta ka juta

जब सब बोलते थे

वह चुप रहता था

जब सब चलते थे

वह पीछे हो जाता था

जब सब खाने पर टूटते थे

वह अलग बैठा टूँगता रहता था

जब सब निढाल हो सो जाते थे

वह शून्य में टकटकी लगाए रहता था

लेकिन जब गोली चली

तब सबसे पहले

वही मारा गया

इब्नबतूता पहन के जूता

निकल पड़े तूफान में

थोड़ी हवा नाक में घुस गई

घुस गई थोड़ी कान में

कभी नाक को, कभी कान को

मलते इब्नबतूता

इसी बीच में निकल पड़ा

उनके पैरों का जूता

उड़ते उड़ते जूता उनका

जा पहुँचा जापान में

इब्नबतूता खड़े रह गये

मोची की दुकान में

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.