Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Fasal“ , “फसल” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

फसल

 Fasal

हल की तरह

कुदाल की तरह

या खुरपी की तरह

पकड़ भी लूँ कलम तो

फिर भी फसल काटने

मिलेगी नहीं हम को ।

हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे

क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे

हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को

सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।

कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी

मेरे ना रहने पर भी

हवा से इठलाएगी

तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी

जिन्होने बीज बोए थे

उन्हीं के चरण परसेगी

काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे

हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।

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