Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “ Jab Jab sir uthaya“ , “जब-जब सिर उठाया” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जब-जब सिर उठाया

 Jab Jab sir uthaya

जब-जब सिर उठाया

जब-जब सिर उठाया

अपनी चौखट से टकराया।

मस्तक पर लगी चोट,

मन में उठी कचोट,

अपनी ही भूल पर मैं,

बार-बार पछताया।

जब-जब सिर उठाया

अपनी चौखट से टकराया।

दरवाजे घट गए या

मैं ही बडा हो गया,

दर्द के क्षणों मेंकुछ

समझ नहीं पाया।

जब-जब सिर उठाया

अपनी चौखट से टकराया।

‘शीश झुका आओ बोला

बाहर का आसमान,

‘शीश झुका आओ बोली

भीतर की दीवारें,

दोनों ने ही मुझे

छोटा करना चाहा,

बुरा किया मैंने जो

यह घर बनाया।

जब-जब सिर उठाया

अपनी चौखट से टकराया।

 

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