Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Tumse alag hokar“ , “तुमसे अलग होकर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तुमसे अलग होकर

 Tumse alag hokar

तुमसे अलग होकर लगता है

अचानक मेरे पंख छोटे हो गए हैं,

और मैं नीचे एक सीमाहीन सागर में

गिरता जा रहा हूँ।

अब कहीं कोई यात्रा नहीं है,

न अर्थमय, न अर्थहीन;

गिरने और उठने के बीच कोई अंतर नहीं।

तुमसे अलग होकर

हर चीज़ में कुछ खोजने का बोध

हर चीज़ में कुछ पाने की

अभिलाषा जाती रही

सारा अस्तित्व रेल की पटरी-सा बिछा है

हर क्षण धड़धड़ाता हुआ निकल जाता है।

तुमसे अलग होकर

घास की पत्तियाँ तक इतनी बड़ी लगती हैं

कि मेरा सिर उनकी जड़ों से

टकरा जाता है,

नदियाँ सूत की डोरियाँ हैं

पैर उलझ जाते हैं,

आकाश उलट गया है

चाँद-तारे नहीं दिखाई देते,

मैं धरती पर नहीं, कहीं उसके भीतर

उसका सारा बोझ सिर पर लिए रेंगता हूँ।

तुमसे अलग होकर लगता है

सिवा आकारों के कहीं कुछ नहीं है,

हर चीज़ टकराती है

और बिना चोट किये चली जाती है।

तुमसे अलग होकर लगता है

मैं इतनी तेज़ी से घूम रहा हूँ

कि हर चीज़ का आकार

और रंग खो गया है,

हर चीज़ के लिए

मैं भी अपना आकार और रंग खो चुका हूँ,

धब्बों के एक दायरे में

एक धब्बे-सा हूँ,

निरंतर हूँ

और रहूँगा

प्रतीक्षा के लिए

मृत्यु भी नहीं है।

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