Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Vyang mat bolo“ , “व्यंग्य मत बोलो” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

व्यंग्य मत बोलो

Vyang mat bolo  

व्यंग्य मत बोलो।

काटता है जूता तो क्या हुआ

पैर में न सही

सिर पर रख डोलो।

व्यंग्य मत बोलो।

अंधों का साथ हो जाये तो

खुद भी आँखें बंद कर लो

जैसे सब टटोलते हैं

राह तुम भी टटोलो।

व्यंग्य मत बोलो।

क्या रखा है कुरेदने में

हर एक का चक्रव्यूह कुरेदने में

सत्य के लिए

निरस्त्र टूटा पहिया ले

लड़ने से बेहतर है

जैसी है दुनिया

उसके साथ होलो

व्यंग्य मत बोलो।

भीतर कौन देखता है

बाहर रहो चिकने

यह मत भूलो

यह बाज़ार है

सभी आए हैं बिकने

राम राम कहो

और माखन मिश्री घोलो।

व्यंग्य मत बोलो।

 

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