Hindi Poem of Shiv Bahadur Singh Bhadoriya “  Jikar dekh liya”,”जीकर देख लिया” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जीकर देख लिया

 Jikar dekh liya

 

जीकर देख लिया

जीने में

कितना मरना पड़ता है

अपनी शर्तों पर जीने की

एक चाह सबमें रहती है

किन्तु ज़िन्दगी अनुबंधों के

अनचाहे आश्रय गहती है

क्या-क्या कहना

क्या-क्या सुनना

क्या-क्या करना पड़ता है

समझोतों की सुइयाँ मिलतीं

धन के धागे भी मिल जाते

संबंधों के फटे वस्त्र तो

सिलने को हैं सिल भी जाते

सीवन,

कौन कहाँ कब उधड़े

इतना डरना पड़ता है

मेरी कौन बिसात यहाँ तो

संन्यासी भी साँसत ढोते

लाख अपरिग्रह के दर्पण हों

संग्रह के प्रतिबिंब संजोते

कुटिया में

कौपीन कमंडल

कुछ तो धरना पड़ता है

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.