पक्के घर में कच्चे रिश्ते
Pakke ghar me kacche rishte
पुरखा पथ से
पहिये रथ से
मोड़ रहा है गाँव
पूरे घर में
ईटें-पत्थर
धीरे-धीरे
छानी-छप्पर
छोड़ रहा है गाँव
ढीले होते
कसते-कसते
पक्के घर में
कच्चे रिश्ते
जोड़ रहा है गाँव
इससे उसको
उसको इससे
और न जाने
किसको किससे
तोड़ रहा है गाँव
गरमी हो बरखा
या जाड़ा
सबके आँगन
एक अखाड़ा
गोड़ रहा है गाँव