Hindi Poem of Shiv Mangal Singh Suman “  Me akela aur pani barasta hai“ , “मैं अकेला और पानी बरसता है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मैं अकेला और पानी बरसता है

 Me akela aur pani barasta hai

 

प्रीती पनिहारिन गई लूटी कहीं है,

गगन की गगरी भरी फूटी कहीं है,

एक हफ्ते से झड़ी टूटी नहीं है,

संगिनी फिर यक्ष की छूटी कहीं है,

फिर किसी अलकापुरी के शून्य नभ में

कामनाओं का अँधेरा सिहरता है।

मोर काम-विभोर गाने लगा गाना,

विधुर झिल्ली ने नया छेड़ा तराना,

निर्झरों की केलि का भी क्या ठिकाना,

सरि-सरोवर में उमंगों का उठाना,

मुखर हरियाली धरा पर छा गई जो

यह तुम्हारे ही हृदय की सरसता है।

हरहराते पात तन का थरथराना,

रिमझिमाती रात मन का गुनगुनाना,

क्या बनाऊँ मैं भला तुमसे बहाना,

भेद पी की कामना का आज जाना,

क्यों युगों से प्यास का उल्लास साधे

भरे भादों में पपीहा तरसता है।

मैं अकेला और पानी बरसता है।

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.