Hindi Poem of Shiv Mangal Singh Suman “  Par aankh nahi bhari“ , “पर आंखें नहीं भरीं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

पर आंखें नहीं भरीं

 Par aankh nahi bhari

 

सीमित उर में चिर असीम

सौन्दर्य समा न सका

बीन मुग्ध बेसुथ कुरंग

मन रोके नहीं रूका

यों तो कई बार पी पी कर

जी भर गया छका

एक बूंद थी किन्तु कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी

कितनी बार तुम्हें देखा पर आंखें नहीं भरीं

कई बार दुर्बल मन पिछली

कथा भूल बैठा

हर पुरानी, विजय समझ कर

इतराया ऐंठा

अंदर ही अंदर था लेकिन

एक चोर पैठा

एक झलक में झुलसी मधु स्मृति फिर हो गयी हरी

कितनी बार तुम्हें देखा पर आंखें नहीं भरीं

शब्द रूप रस गंध तुम्हारी

कण कण में बिखरी

मिलन सांझ की लाज सुनहरी

ऊषा बन निखरी

हाय गूंथने के ही क्रम में

कलिका खिली झरी

भर भर हारी किन्तु रह गयी रीती ही गगरी

कितनी बार तुम्हें देखा पर आंखें नहीं भरीं

 

 

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